आज़ाद देश में घुलाम बन कर रहते हैं,
कुछ लोग हमें नामुराद कहते हैं।
वोह वक़्त कुछ और था,
आगे दौर कुछ और होगा।
हम कल नहीं, आज हैं
माना अपने आप से थोड़े नाराज़ हैं।
उनका बसंती था,
हमारा रंग कुछ और होगा।
पर टोली में आज, हम भी शामिल हो गए,
किसी एक राह पर चलने के, हम भी कायल हो गए।
अब तुमसे क्या छुपाना, हम भी कमीने हैं।
हम भी गोली खाएँगे,
हाज़िर ये दिल, ये सीने हैं।
Tuesday, August 18, 2009
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